Episode 05: Independence Day Special - Rabindranath Tagore's "Chitto Jetha Bhayshunyo"

By Ashwamegh / 15 August 2021 / 16:00:00

In this special episode, we celebrate India's 75th Independence Day. We have our host Ashwamegh reading poems "Khooni Hastakshar", "हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए" and "চিত্ত যেথা ভয়শূন্য". In between the poems, Ashwamegh explains the significance of India's Independence day and the sacrifices that have led to India's freedom, and how we should ignite our souls to keep the country alive.

Hosted by Ashwamegh, A Poet's Work is a weekly podcast that offers poem readings & conversation with poets weekly or every fortnight. Sit back & enjoy, lovely poems written by Poets of all generations!


खूनी हस्‍ताक्षर - गोपालप्रसाद व्यास

वह खून कहो किस मतलब का
जिसमें उबाल का नाम नहीं।
वह खून कहो किस मतलब का
आ सके देश के काम नहीं।

वह खून कहो किस मतलब का
जिसमें जीवन, न रवानी है!
जो परवश होकर बहता है,
वह खून नहीं, पानी है!

उस दिन लोगों ने सही-सही
खून की कीमत पहचानी थी।
जिस दिन सुभाष ने बर्मा में
मॉंगी उनसे कुरबानी थी।

बोले, “स्वतंत्रता की खातिर
बलिदान तुम्हें करना होगा।
तुम बहुत जी चुके जग में,
लेकिन आगे मरना होगा।

आज़ादी के चरणें में जो,
जयमाल चढ़ाई जाएगी।
वह सुनो, तुम्हारे शीशों के
फूलों से गूँथी जाएगी।

आजादी का संग्राम कहीं
पैसे पर खेला जाता है?
यह शीश कटाने का सौदा
नंगे सर झेला जाता है”

यूँ कहते-कहते वक्ता की
आंखों में खून उतर आया!
मुख रक्त-वर्ण हो दमक उठा
दमकी उनकी रक्तिम काया!

आजानु-बाहु ऊँची करके,
वे बोले, “रक्त मुझे देना।
इसके बदले भारत की
आज़ादी तुम मुझसे लेना।”

हो गई सभा में उथल-पुथल,
सीने में दिल न समाते थे।
स्वर इनकलाब के नारों के
कोसों तक छाए जाते थे।

“हम देंगे-देंगे खून”
शब्द बस यही सुनाई देते थे।
रण में जाने को युवक खड़े
तैयार दिखाई देते थे।

बोले सुभाष, “इस तरह नहीं,
बातों से मतलब सरता है।
लो, यह कागज़, है कौन यहॉं
आकर हस्ताक्षर करता है?

इसको भरनेवाले जन को
सर्वस्व-समर्पण काना है।
अपना तन-मन-धन-जन-जीवन
माता को अर्पण करना है।

पर यह साधारण पत्र नहीं,
आज़ादी का परवाना है।
इस पर तुमको अपने तन का
कुछ उज्जवल रक्त गिराना है!

वह आगे आए जिसके तन में
खून भारतीय बहता हो।
वह आगे आए जो अपने को
हिंदुस्तानी कहता हो!

वह आगे आए, जो इस पर
खूनी हस्ताक्षर करता हो!
मैं कफ़न बढ़ाता हूँ, आए
जो इसको हँसकर लेता हो!”

सारी जनता हुंकार उठी-
हम आते हैं, हम आते हैं!
माता के चरणों में यह लो,
हम अपना रक्त चढाते हैं!

साहस से बढ़े युबक उस दिन,
देखा, बढ़ते ही आते थे!
चाकू-छुरी कटारियों से,
वे अपना रक्त गिराते थे!

फिर उस रक्त की स्याही में,
वे अपनी कलम डुबाते थे!
आज़ादी के परवाने पर
हस्ताक्षर करते जाते थे!

उस दिन तारों ने देखा था
हिंदुस्तानी विश्वास नया।
जब लिक्खा महा रणवीरों ने
ख़ूँ से अपना इतिहास नया।



हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए - दुष्यंत कुमार

हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए

आज ये दीवार पर्दों की तरह हिलने लगी
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए

हर सड़क पर हर गली में हर नगर हर गाँव में
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए

सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मिरा मक़्सद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए

English Transliteration - Ho gai hai pir parwat si pighalni chahiye - Dushyant Kumar

ho gai hai pir parwat si pighalni chahiye
is himale se koi ganga nikalni chahiye

aaj ye diwar pardon ki tarah hilne lagi
shart lekin thi ki ye buniyaad hilni chahiye

har sadak par har gali mein har nagar har gaon mein
hath lahraate hue har lash chalni chahiye

sirf hangama khada karna mera maqsad nahin
meri koshish hai ki ye surat badalni chahiye

mere sine mein nahin to tere sine mein sahi
ho kahin bhi aag lekin aag jalni chahiye



চিত্ত যেথা ভয়শূন্য - রবীন্দ্রনাথ ঠাকুর (Chitto Jetha Bhayshunyo - Rabindranath Tagore)

চিত্ত যেথা ভয়শূন্য, উচ্চ যেথা শির,
জ্ঞান যেথা মুক্ত, যেথা গৃহের প্রাচীর
আপন প্রাঙ্গণতলে দিবসশর্বরী
বসুধারে রাখে নাই খন্ড ক্ষুদ্র করি,
যেথা বাক্য হৃদয়ের উৎসমুখ হতে
উচ্ছ্বসিয়া উঠে, যেথা নির্বারিত স্রোতে
দেশে দেশে দিশে দিশে কর্মধারা ধায়
অজস্র সহস্রবিধ চরিতার্থতায়–
যেথা তুচ্ছ আচারের মরুবালুরাশি
বিচারের স্রোতঃপথ ফেলে নাই গ্রাসি,
পৌরুষেরে করে নি শতধা; নিত্য যেথা
তুমি সর্ব কর্ম চিন্তা আনন্দের নেতা–
নিজ হস্তে নির্দয় আঘাত করি, পিতঃ,
ভারতেরে সেই স্বর্গে করো জাগরিত।

English Transliteration

Chitto jetha bhayshunyo, uchcho jetha shir,
Gyaan jetha mukto, jetha griher prachirAapon prangontole diboshoshorboriBoshudhare rakhenai khondo khudro kori,Jetha bakko hridoyer utshomukh hoteUchhoshiya othe, jetha nirbarito sroteDeshe deshe dishe dishe kormodhaara dhaayeOjosrou shahosrobeedo choritaartho taayJetha tuchchho achaarer morubalurashiBichaarer srotohpoth fele nai graashiPourushere kore ni shotodha, nitto jethaTumi shorbo kormo chinta Aanonder neta,Nijo hoste nirdoe aghaat kori peeto,Bharotere shei shorge koro jagorito!

English Translation

Where the mind is without fear and the head is held high;
Where knowledge is free;
Where the world has not been broken up into fragments by narrow domestic walls;
Where words come out from the depth of truth;
Where tireless striving stretches its arms towards perfection;
Where the clear stream of reason has not lost its way into the dreary desert sand of dead habit;
Where the mind is led forward by thee into ever-widening thought and action
Into that heaven of freedom, my Father, let my country awake.



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